भारत में समय-समय पर अलग-अलग शासकों का शासन रहा, जिसमें मराठा, मुगल, फ्रांसीसी, पुर्तगाली और ब्रिटिश शामिल रहे हैं। इतिहास के पन्नों में हमें मराठा और मुगलों के विभिन्न युद्ध देखने को मिलते हैं। हालांकि, क्या आप जानते हैं कि भारतीय इतिहास में एक ऐसी घटना भी रही है, जिसमें मराठा और मुगल, दोनों एक साथ हुए और अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़ी। खास बात यह रही है कि यह जंग दिल्ली के पटपड़गंज इलाके में लड़ी गई, जो कि उस समय यमुना से एकदम सटा हुआ था। इस युद्ध ने भारतीय इतिहास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके बाद अंग्रेज भारत में सत्ता काबिज करने में कामयाब रहे।
क्यों साथ आए मुगल और मराठा
यह उस समय की बात है, जब मराठा मुगलों के प्रभुत्व से परेशान हो गए थे। वहीं, मुगल भी मराठा सरदारों को परास्त करना चाहते थे। ऐसे में इस वजह से दोनों ने संयुक्त रूप से अंग्रेजों का सामना करने की सोची। इस युद्ध में मराठाओं को फ्रांसीसी सेना का सहयोग मिला, जबकि मुगलों की ओर से शाह आलम द्वितीय ने अंग्रेजों का साथ देने की बात कही।
1803 में हुआ था युद्ध
इस युद्ध की शुरुआत 11 सितंबर, 1803 को हुई, जो कि 14 सितंबर तक चला। युद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना के कमांडर जनरल जेरार्ड लेक ने यमुना नदी के किनारे पटपड़गंज के पास अपनी सेना को रोके रखा। उनकी रणनीति थी कि दिल्ली, आगरा और अलीगढ़ जैसे बड़े शहरों पर कब्जा किया जा सके। युद्ध में मराठाओं के काफी सैनिक यमुना नदी को पार करने के चक्कर में मारे गए।
14 सितंबर को दिल्ली में प्रवेश
इस युद्ध में अंग्रेजों के 464 सैनिक मारे गए, जबकि मराठा और मुगलों के संयुक्त रूप से हजारों सैनिक मरे। युद्ध में जीत हासिल करने के बाद ब्रिटिश सेना ने 16 सितंबर को दिल्ली में प्रवेश किया, तो शाह आलम द्वितीय को अपनी सुरक्षा में रखा। वहीं, युद्ध पर फतेह के बाद अंग्रेजों के लिए आगरा और लासवाड़ी के दरवाजे भी खुल गए।
दूसरे आंग्ल-मराठा युद्ध का था हिस्सा
आपको बता दें कि पटपड़गंज क्षेत्र में हुआ यह युद्ध दूसरे आंग्ल-मराठा युद्ध का हिस्सा था। यह वह युद्ध था, जिसने ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में पैर जमाने में मदद की। कुछ इतिहासकारों ने इसे प्लासी और बक्सर के बाद तीसरा सबसे महत्त्वपूर्ण युद्ध बताया है, जिससे अंग्रेजों को भारत में अपनी नींव मजबूत करने में मदद मिली।
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