प्राचीन भारत पर गौर करें, तो हमें महिलाओं के नाम के पीछे देवी उपनाम के तौर पर लिखा हुआ मिलता है। वर्तमान में भी ऐसी बहुत-सी महिलाएं हैं, जो कि अपने नाम के साथ देवी शब्द का उपयोग करती हैं। यह परंपरा काफी लंबे समय से चलती आ रही है। हालांकि, नाम के पीछे देवी लगाने की परंपरा हमें अधिकांश तौर पर उत्तर और पूर्वी भारत में देखने को मिलती है।
वर्तमान में यह मध्य भारत तक भी है, जहां प्रमुख तौर पर महिलाओं द्वारा देवी शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि, क्या आप जानते हैं कि भारत में महिलाएं अपने नाम के पीछे देवी शब्द का इस्तेमाल क्यों करती हैं और यह परंपरा कब से चलन में आई है। यदि नहीं जानते हैं, तो इस लेख के माध्यम से हम इस बारे में जानेंगे।
कितने करोड़ महिलाएं उपयोग करती हैं देवी सरनेम
भारत में महिलाओं की बड़ी संख्या अपने नाम के साथ देवी सरनेम का उपयोग करती हैं। कुछ स्रोतों पर गौर करें, तो करीब 7 करोड़ महिलाओं द्वारा देवी शब्द का इस्तेमाल किया जा रहा है।
धार्मिक और सामाजिक महत्त्व
भारत में महिलाओं को देवी का रूप बताया गया है। हिंदू धर्म में देवी सरस्वती, देवी महालक्ष्मी और देवी दुर्गा आदि की पूजा की जाती है। ऐसे में महिलाओं को देवी का प्रतिकात्मक रूप माना जाता है। वहीं, सामाजिक रूप से आदर सूचक के रूप में महिलाओं के नाम के साथ देवी शब्द जोड़ा गया है, जिससे उन्हें सम्मान की नजर से देखा जा सके।
पूरक शब्द के रूप में इस्तेमाल हुआ देवी
भारत में कई महिलाओं के नाम ऐसे हैं, जो लिखने में बहुत ही छोटे हैं। ऐसे में काफी लंबे समय से ही महिलाओं द्वारा अपने नाम को पूरा करने के लिए देवी शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। उदाहरण के तौर पर देखें, तो गंगा देवी या सरस्वती देवी।
कब से शुरू हुई सरनेम की परंपरा
भारत में ब्रिटिश राज से पहले नाम के पीछे सरनेम लिखने की परंपरा नहीं थी। लोगों को उनके गौत्र, वंश, जाति या परिवार के माध्यम से जाना जाता था। हालांकि, यह सब मौखिक होता था, लेकिन लिखित रूप से इसे कोई नहीं लिखता था। भारत में जब ब्रिटिश राज हुआ, तो दस्तावेजीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई, जिसमें पूरा नाम लिखना अनिवार्य कर दिया गया।
क्योंकि, उस समय स्कूलों से लेकर सेना में भर्ती के दौरान पूरा नाम लिखना अनिवार्य था। ऐसे में लोगों द्वारा अपने नाम के साथ उपनाम भी जोड़ा गया, जिसके बाद बहुत-सी महिलाओं ने अपने नाम के साथ देवी शब्द अपनाया।
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