जौनपुर, उत्तर प्रदेश का एक ऐतिहासिक जिला है, जो पूर्वांचल क्षेत्र में ग़ोमती नदी के किनारे बसा हुआ है। यह वाराणसी से लगभग 55 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित है और इसके पड़ोस में आज़मगढ़, गाज़ीपुर और प्रयागराज जैसे भी जिले हैं। कहा जाता है कि इस नगर की स्थापना मूल रूप से 11वीं शताब्दी में हुई थी, लेकिन ग़ोमती नदी में आई बाढ़ से यह नष्ट हो गया। बाद में खासकर शर्की शासक इब्राहिम शाह के काल में जौनपुर (Jaunpur) शिक्षा, संस्कृति और शिल्पकला का एक प्रमुख केंद्र बन गया। साथ ही जौनपुर को ऋषि मुनियों का निवास स्थान भी माना जाता है. आइए, इसके इतिहास और पुराने नाम से जुड़ी रोचक बातें भी जानते हैं।
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‘सिराज-ए-हिंद’ के नाम से विख्यात
माना जाता है कि मुगल शासक हुमायूं ने जौनपुर में लोगों के बौद्धिक और सांस्कृतिक विकास के लिए मठों और मदरसों के निर्माण की सलाह दी थी। इसके चलते यहां कई विद्वानों को आमंत्रित किया गया। इसी कड़ी में बाद में मुगल बादशाह शाहजहां ने जौनपुर को भारत का ‘सिराज’ यानी दीपक कहा। तभी से जौनपुर को ‘सिराज-ए-हिंद’ के नाम से जाना जाता है।
क्या है जौनपुर का इतिहास
Jaunpur Ka Itihas जौनपुर का इतिहास अनेक महत्त्वपूर्ण शासकों और वंशों से जुड़ा रहा है। 1194 ईस्वी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने यहां के तत्कालीन शासक उदयपाल को पराजित कर सत्ता संभाली थी। बाद में 1389 में फिरोजशाह तुगलक के पुत्र महमूदशाह ने मलिक सरवर ख्वाजा को मंत्री बनाया, जिसने 1393 में ‘मलिक उसशर्क’ की उपाधि पाकर जौनपुर को राजधानी बनाया और शर्की वंश की स्थापना की।
इसी समय में अटाला मस्जिद, जामा मस्जिद जैसी इमारतें बनीं। शर्की वंश के बाद जौनपुर लोदी वंश के अधीन रहा और फिर 1526 में बाबर ने हुमायूं को भेजकर इसे जीत लिया। अकबर के शासन में यहां शाही पुल बना और प्रशासनिक सुधार हुए।
जौनपुर का संबंध विक्रमादित्य काल से जोड़ा जाता है और यहां बौद्ध प्रभाव भी रहा। कई स्थानीय राजवंशों जैसे भर, गहरवार और गूजरों ने भी यहां शासन किया। 11वीं सदी में मोहम्मद गोरी और ज्ञानचंद के संघर्ष से लेकर तुगलक वंश के गयासुद्दीन तुगलक द्वारा शहर के पुनर्निर्माण तक इसका महत्व बना रहा।
बता दें कि डेढ़ शताब्दी तक मुगल सल्तनत के अधीन रहने के बाद 1722 में यह अवध के नवाब के पास चला गया। फिर कुछ समय बनारस के अधीन और अंग्रेजी प्रशासन के अंतर्गत रहा।
जौनपुर जिले का पुराना
कहा जाता है कि कन्नौज के शासक ने इस नगर का नाम पहले ‘यवनपुर’ रखा था। बाद में फिरोजशाह तुगलक ने अपने भाई जूना खां के नाम पर बदलकर ‘जौनपुर’ रखा और इस शहर की पुनः नींव रखी थी। जौनपुर का मूल नाम जमदग्निपुरम भी माना जाता था. हालांकि जौनपुर का वास्तविक विकास शर्की साम्राज्य के शासनकाल में ही हुआ था, जिसके प्रमाण आज भी शहर में मौजूद है।
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