गलवान घाटी में भारत की संप्रभुता की रक्षा करते हुए कर्नल बी. संतोष बाबू ने 15 जून 2020 की रात अपने साथियों के साथ अदम्य साहस दिखाया। उनकी वीरता ने पूरे देश को गौरवान्वित किया। यह श्रद्धांजलि है उस सैनिक को, जिसने राष्ट्रहित में अपने प्राण अर्पित कर दिए। यहां हम कर्नल बी. संतोष बाबू की वीरता की कहानी को विस्तार से बताने जा रहे है.
“वह निहत्थे थे, लेकिन असंरक्षित नहीं – क्योंकि उनके पीछे खड़ा था भारत का सम्मान।”
यह कहानी है उस एक वीर योद्धा की, जिसने लद्दाख की बर्फीली चोटियों पर न केवल शौर्य दिखाया, बल्कि भारत की चुप्पी को इतिहास में आवाज़ दी। यह कहानी है कर्नल बी. संतोष बाबू की, जो गलवान की घाटी में बलिदान नहीं, बल्कि भारत की नई परिभाषा बन गए।
चीन की चालबाज़ी और भारत की सहनशीलता की परीक्षा
वर्षों से चीन समुद्र और पर्वतों में सीमाएं बदलता रहा — नक्शे बनाता, सैनिक भेजता, और बातचीत के बीच निर्माण कार्य करता। उन्हें लगा कि भारत केवल बोलता है, करता कुछ नहीं। लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि भारत की चुप्पी कमजोरी नहीं, बल्कि चेतावनी है। गलवान में वह चेतावनी प्रतिकार में बदली।
सुर्यापेट का सपूत, भारत का प्रहरी
तेलंगाना के सुर्यापेट में जन्मे संतोष बाबू बचपन से ही शांत स्वभाव के, लेकिन दृढ़ इरादों वाले थे। अनुशासन, समर्पण और देशभक्ति उनके व्यक्तित्व का हिस्सा थी। 2004 में उन्होंने 16 बिहार रेजीमेंट जॉइन की और जल्द ही अपने नेतृत्व व सहानुभूति से अपने सैनिकों के प्रिय बने।
गलवान घाटी: राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक
गलवान केवल एक घाटी नहीं, भारत की संप्रभुता की परीक्षा भूमि है। यह क्षेत्र श्योक नदी और दारबुक-दौलत बेग ओल्डी सड़क के पास होने के कारण रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। जो इस घाटी की ऊंचाइयों को नियंत्रित करता है, वही पूरे लद्दाख क्षेत्र की गतिविधियों पर नजर रख सकता है।
जब निहत्थे सैनिकों ने लिखी वीरता की परिभाषा
गलवान में तनाव चरम पर था, और संतोष बाबू को चीनी चौकियों को हटाने की निगरानी का जिम्मा सौंपा गया। भारत-चीन समझौते के तहत हथियार ले जाना मना था। लेकिन जब उन्होंने चीन की चाल देखी, तो उन्होंने साहस के साथ आगे बढ़कर प्रतिरोध किया।
उनका आदेश था: “बिहार रेजीमेंट, आगे बढ़ो!”
और फिर शुरू हुआ संघर्ष — निःशस्त्र, लेकिन असाधारण। वह घायल हुए, लेकिन पीछे नहीं हटे। उन्होंने दिखा दिया कि सरहद सिर्फ हथियारों से नहीं, जज़्बे से भी बचाई जाती है।
बलिदान जिसने देश को झकझोरा
कर्नल संतोष बाबू के बलिदान ने पूरे देश को गहराई से छू लिया। उनकी बेटी का अपने पिता की तस्वीर को सलामी देना करोड़ों लोगों की आंखों में आंसू ले आया। उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया, लेकिन उनकी असली विरासत उस नेतृत्व में है जो उन्होंने आखिरी सांस तक दिखाया।
चुप्पी टूटी, और भारत ने नई भाषा में दिया जवाब
भारत अब सिर्फ एक शांत राष्ट्र नहीं, बल्कि एक ऐसा राष्ट्र है जो ज़रूरत पड़ने पर हर इंच की रक्षा करने को तैयार है। गलवान की उस रात भारत ने पहली बार अपनी चुप्पी को आवाज़ दी — साहस की आवाज़।
दुनिया ने देख लिया कि भारत की चुप्पी उसकी कमजोरी नहीं, बल्कि उसकी गहराई है।
गलवान ने हमें रुलाया, लेकिन साथ ही हमें खड़ा भी किया, एक ऐसे भारत के रूप में जो अपने सम्मान की रक्षा निःशस्त्र होकर भी पूरी ताकत से करता है।
कर्नल संतोष बाबू की शहादत उस लौ की तरह है, जो आज भी हमारे सेनानियों के दिलों में जल रही है।
जब तक गलवान की घाटी में बर्फीली हवाएं बहेंगी, उनका नाम "गलवान का प्रहरी" बनकर गूंजता रहेगा।
लेफ्टिनेंट जनरल शौकिन चौहान, पीवीएसएम, एवीएसएम, वाईएसएम, एसएम, वीएसएम, पीएचडी भारत रक्षा पर्व के लिए विशेष रूप से इन कहानियों को लिखने के लिए आगे आए हैं।
Comments
All Comments (0)
Join the conversation