Children's Day Poems in Hindi: बाल दिवस हर साल 14 नवम्बर को बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह दिन हमारे देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की जयंती के रूप में मनाया जाता है, जिन्हें बच्चों से अपार स्नेह था। नेहरू जी का मानना था कि “बच्चे देश का भविष्य हैं” और उनका जीवन बच्चों के प्रति प्रेम और प्रेरणा का प्रतीक रहा है। बाल दिवस 2025 के अवसर पर देशभर के स्कूलों में विशेष कार्यक्रम, नाटक, गीत, कविताएं और खेलकूद प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। इस खास दिन पर बच्चे अपनी प्रतिभा, रचनात्मकता और आनंद का प्रदर्शन करते हैं। यहां हम लेकर आए हैं 10 खूबसूरत बाल दिवस कविताएं जो बचपन की मासूमियत, खुशियों और सपनों को जीवंत करती हैं। ये कविताएं स्कूल समारोहों, भाषणों या कविता पाठ के कार्यक्रमों के लिए एकदम उपयुक्त हैं।
बाल दिवस पर 5 कविताएं
1. हम थें और बस हमारें सपने
हम थें और बस हमारें सपने,
उस छोटी सी दुनियां के थे हम शहजादे।
लग़ते थे सब अपनें-अपनें,अपना था वह मिट्टीं का घरौदा,
अपनें थे वह गुड्डें-गुडिया,
अपनी थी वह छोटी सी चिडिया,
और उसकें छोटें से बच्चें।
अपनी थी वह परियो की क़हानी,
अपने से थें दादा-दादी, नाना और नानी।
अपना सा था वह अपना गांव,
बारिश की बूंदे कागज की नाव।
माना अब वह सपना सा हैं,
पर लग़ता अब भीं अपना सा हैं।
दुनियां के सुख़ दुख़ से बेगानें,
चलतें थे हम बनक़े मस्तानेे।
कभीे मुहल्ले की गलियो मे,
और कभीं आमो के बागो मे।
कभीं अमरुद के पेड की डालियो पर,
और कभीं खेतो की पगडडियों पर।
इस मस्ती से ख़ेल-ख़ेल मे,
न ज़ाने कब बूढ़े हो गये हम।
बींत गया वह प्यारा बचपन,
न ज़ाने कहां ख़ो गये हम।
- निधि अग्रवाल
2. बचपन
कुदरत ने जो दिया मुझे ,
है अनमोल खजाना !
कितना सुगम सलोना वो
ये मुश्किल कह पाना !!
दमक रहा ऐसे मानो ,
सोने सा बचपना फिक्र !
फिक्र नही कल की
न किसी से सिकवा गिला !!
मित्रो की जब टोली निकले ,
क्या खाये ,बिन खाये !
बडे चाव से ऐसे चलते
मानो जन्ग जीत कर आये !!
कोमल हाथो से बलखाकर ,
जब करते आतिशवजी !
घुन्घरू बान्धे हुए पैर पर
तब चलती खुशियो की आन्धी !!
उन्हे देख मा की ममता का ,
उमड रहा सैलाब !
मन मन्दिर महका रहा
बगिया का खिला गुलाब !!
- अनुज तिवारी इन्दवार
3. एक बचपन का जमाना था
एक बचपन का जमाना था,
जिस में खुशियों का खजाना था..
चाहत चाँद को पाने की थी,
पर दिल तितली का दिवाना था..
खबर ना थी कुछ सुबहा की,
ना शाम का ठिकाना था..
थक कर आना स्कूल से,
पर खेलने भी जाना था..
माँ की कहानी थी,
परीयों का फसाना था..
बारीश में कागज की नाव थी,
हर मौसम सुहाना था..
हर खेल में साथी थे,
हर रिश्ता निभाना था..
गम की जुबान ना होती थी,
ना जख्मों का पैमाना था..
रोने की वजह ना थी,
ना हँसने का बहाना था..
क्युँ हो गऐे हम इतने बडे,
इससे अच्छा तो वो बचपन का जमाना था।
- कोमल प्रसाद साहू
4. चांद का कुर्ता
हठ कर बैठा चांद एक दिन, माता से यह बोला,
सिलवा दो मां मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला।
सनसन चलती हवा रात भर, जाड़े से मरता हूं,
ठिठुर-ठिठुरकर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूं।
आसमान का सफ़र और यह मौसम है जाड़े का,
न हो अगर तो ला दो कुर्ता ही कोई भाड़े का।
बच्चे की सुन बात कहा माता ने, ‘‘अरे सलोने!
कुशल करें भगवान, लगें मत तुझको जादू-टोने।
जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती हूँ,
एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ।
कभी एक अंगुल भर चौड़ा, कभी एक फुट मोटा,
बड़ा किसी दिन हो जाता है, और किसी दिन छोटा।
घटता-बढ़ता रोज़ किसी दिन ऐसा भी करता है,
नहीं किसी की भी आंखों को दिखलाई पड़ता है।
अब तू ही ये बता, नाप तेरा किस रोज़ लिवाएं,
सी दें एक झिंगोला जो हर रोज बदन में आए।
– रामधारी सिंह ‘दिनकर’
5. सबसे पहले
आज उठा मैं सबसे पहले!
सबसे पहले आज सुनूँगा,
हवा सवेरे की चलने पर,
हिल, पत्तों का करना ‘हर-हर’
देखूँगा, पूरब में फैले बादल पीले,
लाल, सुनहले!
आज उठा मैं सबसे पहले!
सबसे पहले आज सुनूँगा,
चिड़िया का डैने फड़का कर
चहक-चहककर उड़ना ‘फर-फर’
देखूँगा, पूरब में फैले बादल पीले,
लाल सुनहले!
आज उठा मैं सबसे पहले!
सबसे पहले आज चुनूँगा,
पौधे-पौधे की डाली पर,
फूल खिले जो सुंदर-सुंदर
देखूँगा, पूरब में फैले बादल पीले
लाल, सुनहले
आज उठा मैं सबसे पहले!
सबसे कहता आज फिरूँगा,
कैसे पहला पत्ता डोला,
कैसे पहला पंछी बोला,
कैसे कलियों ने मुँह खोला
कैसे पूरब ने फैलाए बादल पीले,
लाल, सुनहले!
आज उठा मैं सबसे पहले!
– हरिवंशराय बच्चन
6. तिनका तिनका सुख
तिनका तिनका सुख
ये बचपन की यादें जब आती है
मन के बच्चे को फिर जगाती है
हंसते खेलते वो सुनहरे पल नये
आज से सुन्दर पुराना कलवो रुनझुन
ध्वनि हवा का रुखवो चुनना तिनका तिनका सुख
7.बचपन होता है अनमोल
बचपन में होती हैं खुशियां
बचपन होता है अनमोल
आता नहीं कभी दोबारा ये
समझो तुम सब इसका मोल।।
बचपन के वो खेल पुराने
दोस्तों के संग यादों के तराने
बारिश में वो नाव तैराना
याद आता है वो जमाना ।।
स्कूल में जाना रोजाना
नए-नए बहाने बनाना
दोस्तो के संग घूमने जाना
बचपन है यादों का जमाना ।।
कभी कभी स्कूल नहीं जाना
बहाने बना कर घर पर रुक जाना
होम वर्क नहीं करने पर टीचर की डांट खाना
बचपन होता है यादों का खजाना ।।
समय के साथ बड़े हो जाना
पर बचपन को कभी ना भूल पाना
बचपन का वो जमाना
याद आता है वक्त पुराना ।।
8.मेरा नया बचपन
बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी।
गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी॥
चिंता-रहित खेलना-खाना वह फिरना निर्भय स्वच्छंद।
कैसे भूला जा सकता है बचपन का अतुलित आनंद?
ऊँच-नीच का ज्ञान नहीं था छुआछूत किसने जानी?
बनी हुई थी वहाँ झोंपड़ी और चीथड़ों में रानी॥
किये दूध के कुल्ले मैंने चूस अँगूठा सुधा पिया।
किलकारी किल्लोल मचाकर सूना घर आबाद किया॥
रोना और मचल जाना भी क्या आनंद दिखाते थे।
बड़े-बड़े मोती-से आँसू जयमाला पहनाते थे॥
9.हम उपवन के फूल मनोहर
हम उपवन के फूल मनोहर
सब के मन को भाते।
सब के जीवन में आशा की
किरणें नई जगाते
हिलमिल-हिलमिल महकाते हैं
मिलकर क्यारी-क्यारी।
सदा दूसरों के सुख दें,
यह चाहत रही हमारी
कांटो से घिरने पर भी,
सीखा हमने मुस्काना।
सारे भेद मिटाकर सीखा
सब पर नेह लुटाना॥
तुम भी जीवन जियो फूल सा,
सब को गले लगाओ।
प्रेम-गंध से इस दुनियाँ का
हर कोना महकाओ॥
10. आकाश
ईश्वर ने आकाश बनाया
उसमें सूरज को बैठाया
अगर नहीं आकाश बनाता
चाँद-सितारे कहाँ सजाता?
कैसे हम किरणों से जुड़ते?
ऐरोप्लेन कहाँ पर उड़ते?
हम आशा करते हैं कि आप इन कविताओं से प्रेरित हों और अपने बचपन के और अधिक क्षणों का आनंद लें। हम आपको एक बहुत सुखद बाल दिवस की शुभकामनाएं भेजते हैं।
बाल दिवस की शुभकामनाएं।
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