उत्तर प्रदेश का इतिहास हजारों साल पुराना है। यहां कभी कोसल और पांचाल साम्राज्य हुआ करता था। हालांकि, बाद में यहां शर्कियों का शासन हुआ और उन्होंने यहां जौनपुर बसाया। कुछ समय बाद मुगल पहुंचे, तो उन्होंने यहां अवध सूबा बसाया और कमान नवाबों के हाथों में दे दी। प्रदेश की कमान ब्रिटिश के हाथों में पहुंचने लगी, तो उन्होंने यहां उत्तर-पश्चिम प्रांत का गठन किया।
इस दौरान ब्रिटिश ने इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कई अहम निर्माण भी किए हैं। इस कड़ी में यहां एक ऐसा पुल भी बना हुआ है, जिसके नीचे से नदी बहती है, तो ऊपर से नहर बह रह रही है। इंजीनियरिंग का यह नमूना यूपी के इस पुल को अनोखे पुल की पहचान देता है। कौन-सा है यह पुल और कहां पर है स्थित, जानने के लिए यह लेख पढ़ें।
किस नाम से जाना जाता है पुल
सिविल इंजीनियरिंग के इस अनोखे पुल को नदरई के पुल के नाम से जाना जाता है। वहीं, स्थानीय लोग इसे झाल के पुल के नाम से भी पुकारते हैं। कुछ लोग इसे अंग्रेजी पुल भी कहते हैं।
कहां बना हुआ है यह पुल
नीचे नदी और ऊपर नहर को पार कराने वाला यह पुल उत्तर प्रदेश के कासगंज में मौजूद है। इसके नीचे काली नदी बहती है, तो ऊपर गंगा नहर निकली हुई है।
कब बनाया गया था पुल
इस पुल का निर्माण 1885 से 1889 के बीच किया गया था। पुल को बनने में कुल चार वर्ष लगे थे। हालांकि, यहां हैरानी की बात यह है कि पुल के निर्माण में सीमेंट या सरिया इस्तेमाल नहीं हुआ था, बल्कि उस समय इसे चूने, अरहड़ के दाल के पानी, चना और गुड़ से तैयार किया गया था। आज भी यह पुल पूरी मजबूती के साथ टिका हुआ है स्थानीय लोगों से लेकर बाहरी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है। पुल के बीच में आहते बनाए गए हैं, जिन्हें अक्सर चोर अहाते कहा जाता है। क्योंकि, इन अहातों का इस्तेमाल लोगों द्वारा छिपने के लिए किया जाता था।
पुल के ऊपर क्यों गुजारी गई नहर
उस समय कृषि आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए गंगा नहर का पानी पुल के ऊपर से गुजारने का निर्णय लिया गया था। क्योंकि, नहर के रास्ते में काली नदी थी। नहर के पानी को नदी में मिलाना संभव नहीं था, क्योंकि इससे कृषि आवश्यकतओं को पूरा करने में बाधा हो सकती थी। ऐसे में नदी के ऊपर पुल बनाकर इससे नहर गुजारने का निर्णय लिया गया था। इस पुल का डिजाइन कॉर्क विश्वविद्यालय द्वारा तैयार किया गया था। आज भी इस डिजाइन को विदेशी विश्वविद्यालयों में उदाहरण के तौर पर पेश किया जाता है।
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