हाल ही में उपराष्ट्रपति पद से डॉ. जगदीप धनखड़ द्वारा इस्तीफा देने के बाद उपराष्ट्रपति का पद चर्चाओं में है। साथ ही, धनखड़ द्वारा दिए गए इस्तीफे के कारण को लेकर राजनीतिक गलियारे में अलग-अलग कयास लगाए जा रहे हैं।
भारत के पहले उपराष्ट्रपति बनने की भी अपनी कहानी है। हालांकि, क्या आप जानते हैं कि भारत के पहले उपराष्ट्रपति कौन थे और उनके उपराष्ट्रपति बनने की कहानी क्या है। इस लेख के माध्यम से हम इन सवालों का जवाब जानेंगे।
कौन थे भारत के पहले उपराष्ट्रपति
सबसे पहले हम भारत के उपराष्ट्रपति के बारे में जान लेते हैं। भारत के पहले उपराष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन थे।
उपराष्ट्रपति बनने की क्या रही पृष्ठभूमि
साल 1950 में देश के गणतंत्र बनने के बाद नए संवैधानिक पदों के लिए योग्य व्यक्तियों की जरूरत थी। ऐसे में शिक्षाविद्, दार्शनिक और लेखक के रूप में पहचान रखने वाले डॉ. राधाकृष्णन के नाम का सुझाव दिया गया। क्योंकि, वह 1946 से 1952 तक यूनेस्को में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके थे। वहीं, वह 1948 में यूनेस्को के कार्यकारी बोर्ड के अध्यक्ष भी रहे थे। उन्होंने 1952 तक सोवियत संघ में भारत के राजदूत की भी जिम्मेदारी संभाली थी।
राधाकृष्णन के सामने कौन थे दावेदार
डॉ. राधाकृष्णनन ने 21 अप्रैल 1952 को नामांकन किया था। उनके सामने शेख खादिर हुसैन ने भी अपना नामांकन दाखिल किया था।
शेख का खारिज हुआ नामांकन
नामांकन प्रक्रिया पूरी होने के बाद रिटर्निंग अधिकारी द्वारा नामांकन पत्रों की जांच हुई, तो इसमें शेख खादिर हुसैन का नामांकन कुछ कारणों की वजह से खारिज कर दिया गया। ऐसे में उपराष्ट्रपति पद के लिए डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन अकेले उम्मीदवार बचे, जिन्हें 25 अप्रैल 1952 को निर्वेिरोध निर्वाचित किया गया।
लगातार दो बार रहे उपराष्ट्रपति
डॉ. राधाकृष्णन ने 1952 से 1962 तक लगातार दो बार उपराष्ट्रपति का पद संभाला है। आपको बता दें कि 1957 में भी वह इस पद के लिए निर्विरोध ही चुने गए थे।
1967 में बने राष्ट्रपति
डॉ. राधाकृष्णन साल 1962 में भारत के दूसरे राष्ट्रपति के रूप में चुने गए। उन्होंने साल 1967 तक अपनी सेवाएं दीं।
शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है जन्मदिन
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन 5 सितंबर को होता है। ऐसे में भारत सरकार द्वारा इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। वहीं, भारत के स्कूलों में इस दिन बच्चों को एक दिन का शिक्षक बनने का भी अवसर मिलता है, जिससे उनके अंदर बढ़े होकर शिक्षक बनने की प्रेरणा मिले।
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