उत्तर प्रदेश देश का चौथा सबसे बड़ा राज्य है। इतिहास उठाकर देखें, तो प्रदेश के कई ऐसे स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लोहा लिया था। यही वजह रही कि अंग्रेज कभी भी एक बार में पूरे राज्य पर अपना अधिकार नहीं जमा सके, बल्कि इसके लिए उन्होंने कई युद्ध लड़े और अलग-अलग संधियां कर राज्य पर कब्जा किया था। उत्तर प्रदेश में अंग्रेजों का राज करने का क्या इतिहास है, जानने के लिए यह लेख पढ़ें।
बक्सर का युद्ध और इलाहाबद की संधि से शुरुआत
बक्सर का युद्ध ब्रिटिश और भारतीयों के बीच महत्त्वपूर्ण युद्धों में शामिल है। यह घटना 1764 में हुई थी, जिसमें अवध के नवाब शुजाउद्दौला, बंगाल के नवाब मीर कासिम और मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय को ब्रिटिश ने हरा दिया था।
इसके बाद 1765 में इलाहाबाद की संधि हुई, जिसमें अवध के नवाब को ब्रिटिश ने युद्ध क्षतिपूर्ति के लिए 50 लाख रुपये दिये और अवध ब्रिटिश के लिए एक बफर राज्य बन गया था इसके बाद ब्रिटिश का कई जिलों पर कब्जा हो गया था।
1801 में सहायक संधि से पड़ा दबाव
भारत में जैसे-जैसे कंपनी की शक्ति बढ़ रही थी, वैसे-वैसे ब्रिटिश भारतीयों पर दबाव बना रहे थे। इसके तहत अंग्रेजों ने अवध के नवाबों पर सहायक संधि का दबाव बनाया। नवाब अपनी सुरक्षा के लिए ब्रिटिश सेना को रखते थे, जिसके लिए उन्हें वार्षिक शुल्क देना पड़ता था।
वहीं, गवर्नर-जनरल लॉर्ड वेलेस्ली के दबाव में आकर नवाब सआदत अली खान द्वितीय ने 1801 में एक संधि पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत वार्षिक शुल्क के बदले में उन्होंने अपने क्षेत्र का करीब आधा हिस्सा ब्रिटिश को सौंप दिया। इसमें रोहिलखंड, गोरखपुर और यूपी के कई महत्त्वपूर्ण क्षेत्र शामिल थे। इससे यूपी के अधिकांश हिस्से पर ब्रिटिश अपना अधिकार जमा चुके थे।
1856 में हुआ अवध का विलय
उत्तर प्रदेश पर अंग्रेजों का आखिरी कब्जा 1856 में हुआ था। इस दौरान लॉर्ड दलहौजी ने अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह पर कुशासन का आरोप लगाया और 7 फरवरी, 1856 को उन्हें अवध की गद्दी से हटा दिया।
इसके बाद अवध को विलय ईस्ट इंडिया कंपनी में कर लिया गया। बाद में यहां अंग्रेजों द्वारा बनाया गया उत्तर-पश्चिम प्रांत को अवध सूबे में मिला दिया गया और यह आगे चलकर संयुक्त प्रांत कहलाया। इस तरह 1765 से 1856 तक ब्रिटिश ने उत्तर प्रदेश पर अपना अधिकार किया।
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