हिंदी साहित्य उठाकर देखें, तो गोदान, गबन, कफन और पूस की रात ऐसी रचनाएं हैं, जिन्हें शायद ही किसी हिंदी साहित्य में रूचि रखने वाले पाठक ने न पढ़ा हो। इनके अलावा प्रेमाश्रम, शतरंज के खिलाड़ी व सप्त सरोज भी प्रमुख हैं, जो कि आज तक मांग में हैं।
इन सभी की रचना प्रसिद्ध साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद द्वारा की गई थी। मुंशी प्रेमचंद वह नाम है, जिसे एक छात्र से लेकर विद्वान तक जानता है। यदि आज मुंशी प्रेमचंद के आगे मुंशी न लगाएं, तो सिर्फ प्रेमंचद नाम अधूरा-सा लगता है। यही वजह है कि बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक, हर कोई मुंशी प्रेमचंद को मुंशी के नाम से ही पहचानता है। हालांकि, यहां सवाल है कि आखिर प्रेमचंद कैसे मुंशी प्रेमचंद बने। जानने के लिए यह लेख पढ़ें।
मुंशी प्रेमचंद का असली नाम क्या था
मुंशी प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। उन्हें उनके चाचा द्वारा नवाब राय नाम दिया गया। इस नाम के साथ उन्होंने 1908 में अपनी कहानियों का एक संग्रह सोज-ए-वतन लिखा। यह पूरी तरह से देशभक्ति की भावना से भरा था। हालांकि, यह बात ब्रिटिश अधिकारियों को पसंद नहीं आई और उनकी कृति को जब्त कर लिया गया। साथ ही, ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें इस तरह के दोबारा लेखन पर कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी।
जब पसंद आया प्रेमचंद नाम
उस दौर में जमाना नामक पत्रिका के संपादक दया नारायण निगम ने उन्हें अपना नाम बदलने का सलाह दी। निगम ने उन्हें नवाब राय से प्रेमचंद नाम बदलने को कहा, जो कि उन्हें पसंद आ गया। इसके बाद उन्होंने अपनी साहित्यिक यात्रा में प्रेमचंद नाम ही लिखा।
प्रेमचंद से कैसे बने मुंशी प्रेमचंद
सम्मान के लिए इस्तेमाल होता था मुंशी
उस दौर में अध्यापक या सरकारी दफ्तर में काम करने वाले लोगों के नाम के आगे मुंशी शब्द का प्रयोग किया जाता था। प्रेमचंद अध्यापक भी रह चुके थे। ऐसे में उन्हें मुंशी कहा गया।
गलती से जुड़ा मुंशी
कुछ लोगों का मानना है कि प्रेमचंद में मुंशी नाम गलती से जुड़ा। उस जमाने में हंस नाम की पत्रिका का संपादन कन्हैयालाल मुंशी और प्रेमचंद द्वारा किया जाता था। ऐसे में कन्हैयालाल को सिर्फ मुंंशी ही लिखा जाता था। ऐसा कहा जाता है एक बार पत्रिका में संपादक के आगे मुंशी और प्रेमचंद के नाम के बीच कॉमा रह गया था, जिसके बाद लोगों ने मुंशी को प्रेमचंद के नाम के साथ जोड़कर मुंशी प्रेमचंद बना दिया।
कायस्थ जाति में इस्तेमाल होता था मुंशी
कुछ लोगों का यह भी तर्क है कि कायस्थ जाति में नाम के साथ मुंशी नाम का इस्तेमाल होता था। वहीं, प्रेमचंद कायस्थ जाति से थे। ऐसे में उनके नाम के साथ मुंशी नाम जोड़ा गया।
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