भारत का पहला आधार कार्ड धारक व्यक्ति, जानें नाम

Sep 8, 2025, 17:00 IST

रंजना सोनवणे, पहली आधार कार्ड धारक थीं। उन्हें भारत के डिजिटल समावेश के प्रयासों का प्रतीक माना गया था। हालांकि, 15 साल बाद भी अकाउंट लिंक न होने और पारदर्शिता की कमी के कारण उन्हें सरकारी लाभ लेने में मुश्किल हो रही है। उनका मामला आधार सिस्टम के बड़े लक्ष्य और जमीनी हकीकत के बीच एक बड़े अंतर को दिखाता है।

भारत की पहली आधार कार्ड धारक कौन हैं
भारत की पहली आधार कार्ड धारक कौन हैं

भारत की आधार पहल को देश की विशाल आबादी के लिए डिजिटल पहचान और कल्याणकारी योजनाओं में समावेश की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम माना गया था। 2010 में शुरू हुए आधार ने सभी नागरिकों को एक खास पहचान देने का वादा किया था। इसका मकसद सरकारी लाभों को सही तरीके से पहुंचाना, भ्रष्टाचार कम करना और वित्तीय समावेश को बढ़ावा देना था।

इस प्रयास के केंद्र में महाराष्ट्र के टेंभली गांव की एक सामान्य निवासी रंजना सोनवणे थीं, जिन्हें इतिहास में भारत की पहली आधार कार्ड धारक के रूप में दर्ज किया गया है। उनकी कहानी आधार से जुड़ी उम्मीदों और बाद में सिस्टम की नाकामियों, दोनों को दिखाती है। यह सामाजिक और तकनीकी, दोनों ही दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है।

पहली आधार कार्ड धारक: रंजना सोनवणे

रंजना सोनवणे 2010 में भारत में आधार कार्ड पाने वाली पहली व्यक्ति थीं। उन्हें पहला आधार धारक बनाना एक प्रतीकात्मक और रणनीतिक कदम था। वह 54 साल की थीं और एक पिछड़े ग्रामीण जिले से आती थीं। उन्हें इसलिए चुना गया था ताकि यह दिखाया जा सके कि आधार का मकसद कल्याणकारी योजनाओं के अंतर को खत्म करना और समाज के सबसे वंचित लोगों तक पहुंचना है।

उनकी तस्वीर को सार्वजनिक रूप से प्रसारित किया गया, जिससे वह तुरंत सरकार के डिजिटलीकरण अभियान का चेहरा बन गईं।

प्रक्रिया और कार्यान्वयन

सोनवणे को कार्ड जारी करने की प्रक्रिया तब शुरू हुई, जब भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) ने नंदुरबार जिले के उनके गांव टेंभली में आधार नामांकन शुरू किया। इस प्रोजेक्ट में लोगों की उंगलियों के निशान और आंखों की पुतलियों के स्कैन के साथ-साथ उनकी जनसांख्यिकीय जानकारी भी दर्ज की गई।

सोनवणे के आधार नंबर से उनके लिए कई सरकारी योजनाओं, सब्सिडी और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBTs) के दरवाजे खुलने थे। उनके मामले को देश भर में इस योजना को बड़े पैमाने पर लागू करने के लिए एक मॉडल के रूप में इस्तेमाल किया जाना था।

बाद की चुनौतियां और हकीकत

आधार के अच्छे इरादों के बावजूद सोनवणे का मामला सिस्टम में बड़ी समस्याओं की ओर इशारा करता है। पंद्रह साल बाद उन्हें महाराष्ट्र की 'लाड़की बहिन' जैसी बुनियादी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ पाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है।

हालांकि, राज्य का दावा है कि वह उनके आधार से जुड़े बैंक खाते में पैसे जमा करता है, लेकिन उन्हें कोई भुगतान नहीं मिलता है। इसकी मुख्य वजहें अकाउंट का लिंक न होना, पारदर्शिता की कमी और सरकारी उदासीनता हैं। 

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Kishan Kumar
Kishan Kumar

Senior content writer

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