भारतीय रेशम की साड़ी केवल एक कपड़े का टुकड़ा मात्र नहीं है, बल्कि ये हर राज्य की अपनी कला, गौरव, संपूर्ण इतिहास और कलात्मक कौशल को दर्शाती हैं। भारत के प्रत्येक राज्य की अपनी एक विशेष साड़ी है, जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही तकनीकों से तैयार किया जाता है।
ये साड़ियां स्थानीय कला, पौराणिक कथाओं और वास्तुकलाओं से प्रेरित होकर तैयार की जाती हैं। चाहे फिर बनारस की साड़ी हो, कांजीवरम की सुनहरी चमक या बोमकाई का मिट्टी जैसा आकर्षण। हर तरह की साड़ी एक कहानी को बयां करती है। आगे लेख में देखें भारत की प्रसिद्ध रेशमी साड़ियां और उनके राज्य।
भारतीय राज्यों की प्रतिष्ठित सिल्क साड़ियां
कांजीवरम, तमिलनाडु
कांजीवरम साड़ी अपनी शुद्धता के लिए जानी जाती है। जिसे कई लोग रेशम की रानी से भी जानते हैं। ये साड़ियां मंदिरों, पौराणिक कहानियों को बयां करती हुई डिजाइन की जाती हैं।
बनारसी रेशम, उत्तर प्रदेश
बनारस को प्रतिष्ठित ब्रोकेड साड़ियों का घर कहा जाता है। ये साड़ियां अपने प्रसिद्ध शिल्प कौशल से जुड़ी हुई हैं और इनका उदय वाराणसी के बहुत पुराने शहर से हुआ है।
असमिया मूगा रेशम, असम
असम का मूगा रेशम दुनिया का सबसे मजबूत रेशम है। यहां के रेशम की अनूठी बनावट और प्राकृतिक चमक इसे बेशकीमती बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
पैठणी रेशम, महाराष्ट्र
पैठणी को बुना हुआ सोने के रूप में जाना जाता है, क्योंकि ये राजसी और भव्यता के लिए पहनी जाती हैं। इसे ज्यादातर त्योहारों के समय पहना जाता है।
पटोला रेशम, गुजरात
पटोला साड़ियां अपनी जटिल बुनाई के लिए प्रतिष्ठित हैं और इसे स्टेटस सिंबल भी माना जाता है। गुजरात की पटोला साड़ियों को डबल इकत बुनाई बहुत खास बनाने का काम करती है।
बालूचरी सिल्क, पश्चिम बंगाल
एक विशेष रूप के साथ बनाई गई इन साड़ियों में महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्यों को दर्शाती हैं। यहां की बालूचरी साड़ियां बंगाल की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाती हैं।
चंदेरी रेशम, मध्य प्रदेश
चंदेरी साड़ियों को गर्मियों में पहनने के लिए पसंद किया जाता है। बहुत हल्की रेशमी, चंदेरी साड़ी अपने पतले और नाजुकपन के लिए जानी जाती हैं।
मैसूर रेशम, कर्नाटक
मैसूर की साड़ियां अपनी बेहतरीन बनावट और चमक बनाए हुए हैं। वे शुद्ध रेशम हैं, जिन पर जरी और बॉर्डर तैयार किया जाता है।
पोचमपल्ली इकत रेशम, तेलंगाना
पोचमपल्ली इकत रेशम साड़ी जीवंत रंगों और अनूठी रंगाई के लिए पहचान रखती हैं। इसका हर पैटर्न पहले से तय होता है और बुनाई से पहले रंगा जाता है।
बोमकई सिल्क, ओडिशा
बोमकई सिल्क को सोनपुरी सिल्क के नाम से भी जाना जाता है। एक खास बुनाई से ये साड़ियां तैयार की जाती हैं। ये साड़ियां ओडिशा की स्वदेशी संस्कृति का प्रतीक हैं।
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क्या आप जानते हैं: उत्तर प्रदेश के मुबारकपुर में कपास की बुनाई 14वीं शताब्दी में शुरू हुई थी। सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक के समय में यहां 4000 से अधिक बुनकर रेशमी साड़ी की बुनाई किया करते थे। मुबारकपुर को ज़री और शुद्ध रेशमी बनारसी साड़ी बनाने के लिए जाना जाता है।