भारतीय इतिहास में कई ऐसे कवि और कार्यकर्ता हुए हैं, जिनके शब्दों ने लोगों के दिलों को छुआ और बड़े बदलावों को प्रेरित किया। इस सूची में एक नाम जो सबसे अलग चमकता है, वह सरोजिनी नायडू का है, जिन्हें “भारत की कोकिला” के नाम से जाना जाता है। वह सिर्फ एक कवयित्री ही नहीं थीं, बल्कि एक स्वतंत्रता सेनानी, एक वक्ता और एक ऐसी महिला थीं, जिन्होंने भारतीय महिलाओं के लिए कई बाधाओं को तोड़ा।
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सरोजिनी नायडू को भारत की कोकिला क्यों कहा जाता है?
सरोजिनी नायडू की कविताएं जीवंत कल्पना, संगीत जैसी लय और प्रकृति, प्रेम और देशभक्ति की सुंदरता से भरी होती थीं। उनके इन्हीं गुणों के कारण उनकी लेखनी मधुर और मीठी लगती थी, ठीक किसी कोकिला के गीत की तरह।
इतिहासकारों के अनुसार, महात्मा गांधी ने उन्हें प्यार से यह उपाधि दी थी, क्योंकि उनकी कविताएं जिस तरह से भावनाओं और राष्ट्रीय गौरव को व्यक्त करती थीं, वह उन्हें बहुत पसंद था।
सरोजिनी नायडू कौन थीं?
सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में एक ऐसे परिवार में हुआ था, जो शिक्षा और कला को बहुत महत्व देता था। उनके पिता एक जाने-माने शिक्षक और वैज्ञानिक थे, जबकि उनकी मां खुद एक कवयित्री थीं। सरोजिनी नायडू के शुरुआती बचपन पर उनके माता-पिता के पेशे का बड़ा प्रभाव पड़ा।
उन्होंने अपनी पढ़ाई भारत और इंग्लैंड दोनों जगह से पूरी की। उन्होंने लंदन के किंग्स कॉलेज और कैम्ब्रिज के गिर्टन कॉलेज में अध्ययन किया। अपनी उच्च शिक्षा के दौरान उन्हें साहित्य, राजनीतिक विचारों और समाज सुधार की गहरी जानकारी मिली।
भारत की कोकिला की उपलब्धियां
सरोजिनी नायडू सिर्फ एक कवयित्री ही नहीं थीं, बल्कि वे भारतीय समाज के लिए बदलाव लाने वाली एक बड़ी हस्ती थीं। नीचे दी गई तालिका में उनकी कुछ प्रमुख उपलब्धियों को देखें:
क्षेत्र | उपलब्धि |
कविता और साहित्य | द गोल्डन थ्रेशोल्ड (1905), द बर्ड ऑफ टाइम, द ब्रोकन विंग्स, द सेप्ट्रेड फ्लूट और द फेदर ऑफ द डॉन जैसे कई संग्रह प्रकाशित किए। उनकी कविता “इन द बाजार्स ऑफ हैदराबाद” आज भी बहुत पसंद की जाती है। |
राजनीतिक भूमिका | भारत की आजादी की लड़ाई में एक प्रमुख नेता थीं। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुईं, सविनय अवज्ञा आंदोलनों में हिस्सा लिया और अपनी सक्रियता के लिए जेल भी गईं। |
महिला नेतृत्व | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनने वाली पहली भारतीय महिला (1925 में) थीं। आजादी के बाद, वह किसी भारतीय राज्य (संयुक्त प्रांत, जो अब उत्तर प्रदेश है) की पहली महिला राज्यपाल बनीं। |
सरोजिनी नायडू की विरासत
2 मार्च 1949 को उनका निधन हो गया, लेकिन सरोजिनी नायडू आज भी भारत में एक प्रिय हस्ती हैं। उनकी कविताएं आज भी पढ़ी जाती हैं और उनके भाषण याद किए जाते हैं। जब भी शब्दों की सुंदरता, देश प्रेम और साहस की बात होती है, तो उनकी उपाधि “भारत की कोकिला” आज भी सार्थक लगती है। वह इस बात की याद दिलाती हैं कि किसी की आवाज कई सालों बाद भी लोगों को प्रेरित कर सकती है।
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